शनिवार, 24 मार्च 2018

बादाम के पुष्प





 



बादाम के पुष्प
जब भारत से स्पेन आई तो यहां उगने वाले फूलों से भी धीरे धीरे परिचय होने लगा। पिछले अट्ठारह साल में मुझे हमेशा से ही ये बसंत में खिलने वाले बादाम के पुष्प अपनी और बेहद आकर्षित करते हैं। Prunus Dulcis इसका वैज्ञानिक नाम है और आम तौर पर यह बादाम के वृक्ष के नाम से जाना जाता है। यहां स्पेन में Almendro के नाम से पहचानते हैं इसे।
स्पेन में स्प्रिंग/बसंत आने से कुछ पहले ही फरवरी में बादाम के खुशबूदार, नरम ओ नाज़ुक फूल खिलते हैं और इनकी सामूहिक प्राकृतिक छटा अद्भुत नज़ारा चारों और बिखेरती है। इनकी नज़ाकत का आलम यह है कि हवा के बहने भर से ही ये सुन्दर पुष्प दल बिखर कर ज़मीन पर गिर जाते हैं, उस पर यदि बारिश जल भी गिरने लगे तो ये अद्भुत कुसुम दल अल्प आयु में ही वृक्ष से विदा ले लेते हैं । वैसे यह भी प्रकृति की ही लीला है कि प्रकृति इन दिनों जब भिन्न पुष्प दल विकसित कर रही होती है ठीक इन्ही दिनों इंद्र देव भी अपनी मेघ सेना की उपस्थिति से स्पेन के जलाशयों में जल संग्रह का कार्य कर रहे होते हैं।
मद्रिद में कई जगहों पर इनके अर्थात बादाम के आलंकारिक वृक्ष रोपे हुए हैं। यहां शहर के विभिन्न हिस्सों में बादाम के पेड़ आसानी से दिख जाते हैं और मद्रिद शहर में ही अलकाला स्ट्रीट के 527 नंबर पर स्थित सार्वजानिक उद्यान में लगभग 1500 बादाम के वृक्ष एक साथ खिले हुए देखना चाहते हों तो Quinta de los Molinos (Madrid) उद्यान में पहुँच कर इस नैसर्गिक जामुनी रंगी उत्सव का अवश्य आनंद लीजिये।
धूप में उगने वाले लगभग दस मीटर के इस पेड़ पर चार या पांच पुष्प समूह में फूल खिलते हैं। पांच पंखुड़ियों वाला यह करीब एक इंच का द्विलिंगी पुष्प सफ़ेद से हलके गुलाबी रंग का होता है। एक ही पुष्प में पंद्रह से तीस पुंकेसर लगे होने से पंखुड़ियाँ कुछ कुछ छींटदार दृश्यमान होती हैं। और जब पर्ण विहीन वृक्ष कुसुमाकर प्रतीत होता है तब कल्पना में ही यह गुलाबी जमुनी दृश्य रोमांच पैदा कर देता तो सदेह उपस्थिति का आलम कैसा होगा यह वर्णन करना कठिन है।
मौका मिले तो दुनिया के विभिन्न देशों में स्थित इन पुष्पों से परिचय अवश्य करें। यक़ीन मानिये आप जैसे ही इनके क़रीब जायेंगे ऐसा प्रतीत होगा कि ये पुष्प आपसे बातें करने को उत्सुक हैं, मानो इन्हें बरसों से आप ही की प्रतीक्षा थी। इनका कोमल स्पर्श ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे आप देवलोक की सैर कर रहे हैं । इन दिनों मैं समय मिलते ही मद्रिद में इन कुसुम दलों से बतियाने निकल पड़ती हूँ, अवसर मिले तो आप भी निकल पड़िये लेकिन ध्यान रखिये कि यह प्राकृतिक नज़ारा सिर्फ़ फरवरी से अप्रैल तक ही दृष्टिगोचर होगा।
साहित्य और कला में भी इस पुष्प की उपस्थिति बहुतायत से विद्यमान है। यहां तक कि इस पुष्प के लिए साहित्यिक प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है। जन मानस से जुड़े इस पेड़ और फूल को लेकर अक्सर लोग उत्साहित रहते हैं। पलेस्टाइन के प्रसिद्ध कवि महमूद दार्विक्स ने अपनी अंतिम पुस्तक का नामकरण बादाम के पुष्प के नाम पर ही किया, उसी किताब से इस पुष्प को समर्पित कविता से कुछ पंक्तियाँ देखिये:-
बादाम के फूल का
वर्णन करने के लिए
वनस्पति शास्त्र का कोई
प्रामाणिक विश्व कोश नहीं
कोई शब्दकोष भी नहीं
भाषाई शब्द अलंकार के जाल में फँसूँगा मैं /
और अलंकारिक भाषा से ज़ख़्मी होगी चेतना
और यही ज़ख्म का यश गान करेगी
ठीक उस मर्द की तरह
जो अपनी स्त्री को भावुकता का आज्ञापत्र लिखवाता है
यदि मैं अनुगूँज हूँ तो....
मेरी बोली में बादाम के पुष्प को कैसा प्रदीप्त होना चाहिए? शायद इस तरह...
पारदर्शक, जैसे पानी सी हंसी
टहनियों पर लजीली, ओस की बूँद सा
सौम्य, रसीले उज्जवल वाक्य की तरह
नाज़ुक, उस लम्हे की तरह जो
किसी खयाल हमारी उंगली के पोर से झांकता है
और निष्प्रयोजन हम लिखते हैं...
घनीभूत, उस कविता की तरह जो
शब्दों से नहीं लिखी जाती
बादाम के पुष्प का वर्णन करने के लिए
मुझे अचेत भ्रमण पर जाना होगा
जहाँ शब्द कोष पर प्रबल हो
वृक्ष से लिपटी हुई भावुकता
.......
(स्पेनिश से अनुवाद- पूजा अनिल )
Vincent van Gogh ने इस पुष्प को लेकर कुछ पेंटिंग्स बनाई हैं। इंटरनेट पर Almond Blossom / Almendro En Flor लिखेंगे तो आसानी से मिल जाएँगी वे तस्वीरें।
- पूजानिल
- रात के एक बजे इस समय जब मैं यह आलेख लिख रही हूँ, बाहर बहुत तेज़ बारिश हो रही है और वेगवान हवा चल रही है। कांच की खिड़की पर गिरती बूंदों की आवाज़ से प्रतीत हो रहा है कि तेज़ आंधी तूफ़ान मचा हुआ है बाहर। मैं लिखना रोक कर उठकर खिड़की से झाँक आई हूँ, इतनी तेज़/ घनघोर बारिश और हवा है कि कुछ भी दीखता नहीं। इस से मैं यह अंदाज़ा लगा रही हूँ कि बादाम के वृक्ष की जो तस्वीरें मैंने कल उद्यान में लीं थीं, यदि वे आने वाले कल के लिए स्थगित रखती तो निश्चित ही कल यह दृश्य नहीं मिलता। कितना छोटा है जीवन और कितनी बड़ी हैं तमन्नाएँ कि उदासियों के ज़िक्र के बिना मिटती ही नहीं! (तस्वीरें 23 मार्च 2018 को लीं गईं।)

रविवार, 18 मार्च 2018

गाली देने वाली लड़कियाँ

कभी उनसे बात करना तो 
साथ रखना तहज़ीब और तमीज़ 
वर्ना गालियों की बौछार 
मिल सकती है उपहार।  
पीड़ा की 
असहनीय आग से 
गुज़र चुकी होती हैं  
जन्मों जन्मों से 
ज़ख्मों की 
टीस में पली होती हैं   
गाली देने वाली लड़कियाँ। 


उन्हें लगता है उनके सर पर 
मोर पंखों का ताज रखा है 
जिसकी ऊँची उड़ान से वे 
सैर कर आएँगी 
दुनिया भर के अजूबों की  
लेकिन वे कभी भूलती नहीं कि 
कांटें बिछे रहते हैं 
उनके क़दमों तले , 
इसीलिए 
अक्सर दोगली होती हैं 
गाली देने वाली लड़कियाँ। 
घिन्न आने लगती है 
करके उनसे वार्तालाप 
जैसे अचानक घेर लेता है 
कोई अबूझा संताप 
पीछा छुड़ा दूर जाने 
की  उठती है तमन्ना 
बगल में मचलती है खुजली 
चेहरे पर दमकता है पसीना 
तभी तो, 
लगती हैं बदबूदार और कुरूप  
गाली देने वाली लड़कियाँ। 

नहीं करतीं वे बे-बात कोई विवाद 
अक्सर हॅंस हॅंस करती हैं परिहास  
पुराने प्रेमी के वे बताती नहीं किस्से 
छुपा भी नहीं पातीं टूटे दिल के हिस्से 
जिससे चाहा था कहना 
मन की प्यारी बात 
वही निकला कायर 
छोड़ा बीच राह साथ 
कहा तो था..  
बड़े घाव दिल में रखती हैं समेटे
गाली देने वाली लड़कियाँ। 
-Poojanil

रविवार, 4 मार्च 2018

पोस्टकार्ड मटमैला

[25/03/2016] डायरी से-
 यादें हमारे मन मस्तिष्क के किस कोने में घर बसाती हैं, यह तो हम कभी नहीं जान सकते, किंतु जब यही यादें अचानक सामने आकर चौंका देती हैं तो यह ज़रूर जान लेते हैं कि कोई याद हमारे ही भीतर छिपी सांस ले रही थी, पल रही थी अपने प्रत्यक्ष होने की प्रतीक्षा में।
आज होली पर अचानक ऐसी ही एक याद सामने आई, जब मैंने अपने परिवार और मित्रों को वर्चुअल होली की बधाई भेजी।
मैंने अपना पहला ख़त तब लिखा होगा जब मुझे अक्षर ज्ञान हुआ। अ आ ई इ लिख कर अपने ननिहाल भेजा होगा। जिसे पढ़कर जाने कितनी प्रशंसा भी पाई होंगे उस ख़त को पढ़ने वालों से। उसके बाद ख़त लिखने का सिलसिला जब तक ब्याह न हुआ, चलता ही रहा। शादी के बाद भी कुछ समय यह सिलसिला जारी रहा। फिर जल्द ही ई मेल्स ने इसकी जगह ले ली। फिर और भी गति बढ़ी। चैट फिर व्हाट्सऐप। अब ख़त नहीं लिखती मैं। किसी को भी नहीं। सब कुछ सन्देश इंस्टेंट मेसेज के जरिये भेजे जाते हैं।
खैर, यह याद नहीं थी। मुख्य याद है 15 पैसे वाला पीला सा  मटमैला रेतीले रंग वाला  पोस्टकार्ड। आपमें से बहुतों को याद होगा वह पोस्टकार्ड। जब बहुत छोटी थी तब से ही याद है कि पिताजी अपने परिवार और मित्रों को प्रत्येक त्यौहार पर उसी पोस्टकार्ड पर सन्देश स्वयं अपने हाथ से लिखकर भेजते थे। उनकी हस्तलिपि बेहद सुंदर रही। मैं भाषा कुछ कुछ समझने लगी तो उनका साथ देने लगी पोस्टकार्ड लिखने में। फिर एक समय ऐसा भी आया जब उनके सारे पोस्टकार्ड्स लिखने का जिम्मा मेरा रहा। त्यौहार से लगभग दस दिन पहले लिख कर सन्देश भेज दिया जाता था। मैटर इतना सिम्पल था कि मुझे बचपन से ही याद हो गया था। We wish you and your family a very happy.... so n so त्यौहार।  पापा हिंदी में भी शुभकामनाएं भेजते थे। हिंदी में मेटर भी इसी तरह बेहद छोटा सा होता था। आपको और आपके पूरे परिवार को फलाँ फलाँ त्यौहार की बधाई।
नीचे पापा के नाम के साथ उनके हस्ताक्षर। और सबसे ऊपर दायें कोने में तारीख और शहर का नाम। पोस्टकार्ड के दूसरी तरफ दो कॉलम होते थे। प्रेषित प्रेषक .. यानी एक तरफ भेजने वाले का पता लिखते हम और दूसरी तरफ पाने वाले का पता। करीब 30-35 पोस्टकार्ड्स तैयार करके इसी तरह भेजे जाते थे। उनमें से कई लोग जवाब भी देते थे, तो मुझे बड़ी ख़ुशी होती थी कि पढ़कर किसी ने पोस्टकार्ड के जरिये जवाब तो दिया।
आज भी यदि किसी ने मेरे पापा के उन, त्यौहार पर बधाइयों वाले, पोस्टकार्ड्स संभाल कर रखे हों तो निश्चित ही मेरी हस्तलिपि उनके पास अमानत के तौर पर रखी हुई होगी।
इस साल 2016 में होली पर मेरी बधाई सबको पहुँच गई होगी, पर मेरी हस्तलिपि नहीं पहुंची। पापा के साथ होली खेले हुए भी तो बीस साल हो गए!
-पूजानिल